इतिहास
आजसू पार्टी देश की क्षेत्रीय राजनीतिक दल है। पार्टी का कार्यक्षेत्र झारखंड है। यह पार्टी आंदोलन से निकली है। झारखंड अलग राज्य आंदोलन के दौरान यह एक छात्र संगठन था। 1984 में झारखंड समन्वय समिति का गठन हुआ। झारखंड समन्वय समिति ने 1984 से 1989 के बीच अलग आंदोलन करने का प्रण लिया। 1986 में अलग झारखंड आंदोलन के दौरान आजसू का गठन हुआ। आंदोलनकारी युवाओं ने ऑल असम स्टुडेंट युनियन (आसू) के द्वारा बाहरी घुसपैठियों के खिलाफ असम में चलाए गए आंदोलन से प्रेरित होकर आजसू का गठन किया। 22 जून 1986 को जमशेदपूर के सोनारी में आजसू की नींव रखी गयी। आजसू ने 27-28 दिसम्बर 1986 को झारग्राम, पश्चिम बंगाल में अपना प्रथम अधिवेशन आयोजित किया। इस दौरान आजसू ने 3 प्रमुख निर्णय लिए थे। आजसू ने अपने निर्णय में घोषणा की थी की 1987 का वर्ष जनजागरण वर्ष होगा , 1988 तक झारखण्ड को अलग राज्य बनाने का केंद्र सरकार को अल्टीमेटम एवं झारखण्ड में बिखरी हुई सभी संघर्षवादी शक्तियों को एकजुट करना शामिल था।
ऑल झारखण्ड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का एक प्रतिनिधिमंडल ने 1987 में दिल्ली में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से मिलकर अलग झारखण्ड राज्य की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में आजसू के छात्र नेताओं ने आदिवासियों की समस्याओं को विस्तार से रखा । 8 अगस्त 1987 को झारखण्ड आंदोलनकारी निर्मल महतो की हत्या के बाद आजसू ने 25 सितंबर 1987 को प्रतिरोध में झारखण्ड बंद बुलाया। यह बंद अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक था जिसने आगे जाकर एक जनआंदोलन का रूप लिया। 25 सितम्बर के झारखण्ड बंद के बाद आजसू ने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को तार भेजकर 31 अक्टूबर तक आजसू के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करने का अल्टीमेटम दिया। आजसू ने अपने अल्टीमेटम कहा कि अगर बातचीत शुरू न हुई तो आजसू प्रस्तावित झारखण्ड क्षेत्र में रेल रोको और रास्ता रोको आन्दोलन शुरू करेगी। आजसू ने झारखण्ड क्षेत्र के सभी विधायकों एवम सांसदों से अपने पद से इस्तीफे की मांग की | इस्तीफा नहीं देने वालों के खिलाफ आजसू ने आन्दोलन की करने की बात कही। आजसू की दलील थी कि जब तक झारखण्ड अलग प्रांत नहीं बनेगा तब तक इस क्षेत्र में चुनाव नहीं होने देंगे, क्यूंकि चुनाव से झारखण्ड आन्दोलन हर बार कमज़ोर होता है ।
झारग्राम अधिवेशन के अपने निर्णय को आगे बढाते हुए सभी संघर्षवादी शक्तियों को एकजुट करने हेतु 11 ,12,13 सितम्बर को रामगढ में एक वृहत सम्मलेन बुलाया गया। इस सम्मलेन में 47 संगठनों के 429 प्रतिनिधियों ने भाग लिया | इस सम्मलेन में झारखण्ड समन्वय समिति के घोषणा पत्र पर विस्तार से विचार करके उसको सर्वसम्मति से पारित किया गया| इस घोषणा में बिहार, उड़ीसा,मध्यप्रदेश और पश्चिम बंगाल के 21 जिलों के झारखण्ड राज्य की मांग पर जोर दिया गया। रामगढ सम्मलेन के बाद पूरे झारखण्ड आन्दोलन को एक वैचारिक आधार प्राप्त हुआ | इस सम्मेलन में झारखण्ड समन्वय समितिकी स्थापना हुई जिसने 15 नवम्बर 1987 को रांची में एकता रैली का आयोजन किया। प्रशासन ने कड़ाई करते हुए दो लाख लोगों को विभिन्न स्थानों पर रैली में जाने से रोक दिया| इसके विरोध में 19 नवम्बर को झारखण्ड बंद बुलाया गया जिसे आजसू ने अभूतपूर्व तरीके से सफल बनाया।
31 जनवरी 1989 को कलकत्ता में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया इस रैली में बिहार,पश्चिम बंगाल, ओड़िसा, मध्य प्रदेश के आदिवासी आबादी वाले समीपस्थ जिलों को मिलकर वृहत झारखण्ड की मांग पर जोर दिया गया। रैली के बाद आजसू ने 20,21,22 अप्रैल 1989को तीन दिन के झारखण्ड बंद की घोषणा की। यह बंद से रेल यातायात ठप हो गयी और इससे आजसू को शक्तिशाली रूप से उभरने का अवसर मिला। इस बंद की सफलता से उत्साहित आजसू कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की अगली रांची यात्रा पर विरोध प्रकट करने का निर्णय लिया। 31 जनवरी 1989 की कलकत्ता रैली की जोरदार सफलता और 21,22,23 अप्रैल के झारखण्ड बंद की सफलता से केंद्र सरकार का ध्यान इस मसले की गंभीरता की ओर केन्द्रित हुआ।
केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह के बुलावे पर आजसू के पांच प्रतिनिधि वार्ता के द्वार खोलने की कोशिश में दिल्ली गए। आजसू के नेताओं ने आन्दोलन को नया तेवर प्रदान करते हुए उड़ीसा में एक जोरदार रैली का आयोजन किया। जिसे उड़ीसा सरकार ने रोकने की पूरी कोशिश कीऔर आजसू नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आजसू ने केंद्र एवम राज्य दोनों सरकारों को चेतावनी दी की यदि इस तरह अहिंसक कार्यक्रमों को जबरन रोकने की कोशिश की जाती रही तो मजबूर होकर आजसू को हिंसा का मार्ग अपनाना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने जुलाई 1993 में विधानसभा में वादा किया की वह सितम्बर में विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर झारखण्ड स्वशासी परिषद् विधेयक पेश करेंगे। आजसू ने झारखण्ड विषयक समिति की रिपोर्ट में उल्लिखित सांस्कृतिक इलाकों को मिलाकर अलग झारखण्ड राज्य के गठन की मांग को लेकर 13 मार्च 1994 से आमरण अनशन आरम्भ कर दिया। अनशन के आठवे दिन 20 मार्च को रांची जिला प्रशासन ने पाँचों अनशनकारी नेताओं को जबरन उठाकर अस्पताल में भरती करवा दियाइस पर अनशनकारी डॉ देवशरण भगत ने कहा जिस देश का प्रधानमंत्री झूठ बोलता हो, जिस सूबे का मुख्यमंत्री फरेबी होवहां मरने के सिवाय कोई रास्ता भी तो नज़र नहीं आता।
बाद में ऑल झारखंड स्टूडेंट युनियन जो आंदोलनकारी छात्रों का संगठन उसका निबंधन चुनाव आयोग में आजसू पार्टी के नाम से करा दिया गया। चुनाव आयोग ने क्षेत्रीय राजनीतिक दल की मान्यता दी। वर्तमान में पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो है। भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली के द्वारा अधिसूचना संख्या 56/201017.10.2010 ई0के द्वारा आजसू पार्टी को झारखंड राज्य के लिए क्षेत्रीय दल के रूप में सूचीबद्ध करते हुए चुनाव चिन्ह केला छाप आबंटित किया। 2009 के झारखंड विधान सभा चुनाव में आजसू पार्टी के तरफ से पाँच विधायक चुनाव जीत के विधानसभा पहुंचे । 2011 में हटिया विधानसभा में हुए उपचुनाव में आजसू पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की इसके बाद पार्टी विधायकों की संख्या 6 पहुंची। झारखंड विधान सभा चुनाव २००५ में पार्टी के दो सदस्य थे। पार्टी के केन्द्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार मह्तो 2005 में बनी अर्जुन मुन्डा सरकार में झारखंड के गृहमंत्री थे। इसी पार्टी के चन्द्रप्रकाश चौधरी भी अर्जुन मुन्डा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 2014 के विधान सभा चुनाव में पार्टी के 5 उम्मीदवार चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। वर्तमान में राज्य के रघुबर दास सरकार में आजसू पार्टी के विधायक श्री चंद्रप्रकाश चौधरी कैबिनेट मंत्री हैं। आजसू पार्टी का मुख्य मकसद झारखंड राज्य का नवनिर्माण करना है। झारखंडी हितों के लिए आजसू पार्टी लगातार आंदोलनरत है।