बिरसा मुंडा
1895 से 1900 तक बिरसा ने अंग्रेज और जमींदारों के शोषण से मुक्ति पाने के लिए अबुआ दिसुम, अबुआ राज के निर्णायक आंदोलन में कूद खुद की आहूति दे दी।
कौन थे
उलिहातु के चलकद गांव में 15 नवंबर, 1870 को जन्म। चाईबासा के मिशन स्कूल में पढ़ाई। बिरसाईत धर्म चलाया। चमत्कार किए। लोग उन्हें भगवान मानते थे। अंग्रेजी शोषण के खिलाफ ग्रामीणों को इकट्ठा किया। कई रोगी ठीक किए। केंद्रीय कारागार रांची में अंतिम सांस ली।
योगदान
आदिवासी समाज में व्याप्त बुराइयों, नशाखोरी और मांस, मछली आदि का सेवन को खत्म करने की कोशिश की। एक ईश्वर की पूजा का आह्वान किया। अंग्रेजों के खिलाफ गांव-गांव के लोगों का संगठित कर आंदोलन के लिए तैयार किया। 1900 में गिरफतारी संतरा वन से हुई।