झामुमो झारखंडवासियों के बीच छुपा आस्तीन का सांप है, सौदेबाजों का गिरोह है महागठबंधन – राजेंद्र मेहता

रांची। आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव राजेंद्र मेहता ने कहा कि झारखंड और झारखंडवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन झारखंड मुक्ति मोर्चा है। यह झारखंडवासियों के बीच छुपा आस्तीन का सांप है। झारखंडवासियों को झारखंड मुक्ति मोर्चा से सावधान रहने की जरूरत है। 

 

उन्होंने आगे कहा कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट के संशोधन का सबसे बड़ा दोषी झारखंड मुक्ति मोर्चा है। 2010 में झामुमो के तत्कालीन राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री मथुरा महतो ने सबसे पहले इसका प्रस्ताव लाया था। इस प्रस्ताव को तत्कालीन उप मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वित्त मंत्री की हैसियत से इसकी स्वीकृति दी थी। बाद में हेमंत सोरेन ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 27 सितंबर 2014 को खुद अपनी अध्यक्षता में टी.ए.सी. की बैठक में संशोधन को मंजूरी दिलाई थी। 

 

सिएनटी/एसपीटी एक्ट का उल्लंघन उनके परिवार द्वारा कई जगहों पर किया है। जो एक आपराधिक कृत्य है। 

 

यह तो आजसू पार्टी की जोरदार विरोध का परिणाम है कि झारखंड सरकार को सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल को वापस लेना पड़ा। 

 

उन्होंने आगे कहा कि यह तो सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन का मामला था जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा जनता को बरगलाने के लिए बहुत डिंगे हांकती थी। इतना ही नहीं हेमंत सोरेन ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में झारखंड की मातृभाषा (संथाली, मुंडारी, हो, कुडुख, नागपुरी) जैसी क्षेत्रीय भाषाओं को जेपीएससी की परीक्षा से हटाने की अनुशंसा तक कर डाली थी। जनता अब यह बताए कि जो अपनी मातृभाषा को ही हटाने की अनुशंसा करता हो वो कैसा झारखंडी है? 

 

आठ बार उनके पिता श्री सिबू सोरेन सांसद रहें, केंद्र में कोयला मंत्री रहें, दो बार राज्य के मुख्य मंत्री रहें, खुद हेमंत सोरेन 14 महिनें राज्य के मंत्री रहें, मैं चुनौती देता हूं कि झारखण्ड के हित में एक भी उपलब्धि बताऐं। यहां तक कि स्थानीयता पर सरकार गिराकर खुद मुख्यमंत्री बनें और स्थानीयता भी नहीं बना पाऐ।

 

कई मौकों पर झारखण्ड को गिरवी रखने के बाद भी बड़ी-बड़ी बातें कर राज्य के आदिवासियों और मूलवासियों को गुमराह करना इनकी राजनीति का केंद्रबिंदू हैं। नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए किया गया सौदा आज भी पूरे देश में हम झारखण्ड वासियों को शर्मसार करती है। ये तो एक उदाहरण है। ऐसे कई सौदे श्री सोरेन के दल ने किया है। झारखण्ड विरोधियों के गोद में बैठकर झारखण्ड के सौदागर की भूमिका निभाते हैं। 

 

सौदेबाजी इनके खून में है। हेमंत सोरेन का ये कहना कि महागठबंधन मुझे विधानसभा का नेता घोषित करे तभी हम गठबंधन में शामिल होंगे। ये सौदेबाजी नहीं है तो क्या है? ऐसे कितने सौदे इन्होंने किए हैं। ये तो मौजूदा उदाहरण है। मै दावे के साथ कहता हूं कि अभी तो सौदेबाजी हो गई है लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल दल इनहें नेता मानकर चुनाव नहीं लडेंगे। कांग्रेस भी इनसे सौदेबाजी करना जानती है। सौदेबाजों का गिरोह है महागठबंधन। 

 

मैं भी पूर्व में झामुमो का प्रवक्ता रह चुका हूँ। इनके दोहरे चरित्र से मैं पूर्णतः वाकिफ हूं। राज्य की जनता इन्हें कभी माफ नहीं करेगी।  

 

राजेंद्र मेहता